Ramzaan always-always of only 30 days
Ramzaan always-always of only 30 days
बिस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम
शिया इसनाअशरी कि मुस्तनद किताब "मजमउल बहरैन" में नफ़स के माद्दह मे लिखा है, "हुज़ैफ़ा ने मौलाना ज़ाफ़र सादिक (अ) को कहा कि लोग कहते हैं कि रसूलअल्लाह ने शहरे रमज़ान के उनतीस (29) रोज़े ज़्याद किए बनिसबत तीस (30) के। आप ने फ़रमाया वह लोग झूठे हैं। आप (रसूलअल्लाह) ने वफ़ात पाए वहां तक तीस रोज़े से कम नहीं किए। जब से अल्लाह ने आसमान ज़मीन पैदा किए तब से आज तक शहर रमज़ान तीस दिन और तीस रात से कम नहीं हुआ, नाकिस नहीं हुआ।"
इस के खिलाफ़ और भी रिवायत आई हैं इसलिए फ़िकाअ में इखतिलाफ़ हुआ। किसी ने नुकसान को (29 दिन) को ज़ायज़ समझा किसी ने नहीं। जिस फ़िकाअ ने निकसान नहीं माना वह है शैख अल मुफ़ीद के मुताबिक अबू मोहम्मद अल हसनी, अबुल कासिम, शैख अबू अब्दुल्लाह, शैख अबू मोहम्मद हारून वगैरह। हम किताब अल खमाल में लिखा है कि शिया के खास और अहले बसीरत फ़िकाअ ने फ़िर कहा है कि माहे रमज़ान हमेशा-हमेशा तीस दिन से कम नहीं।
इस के खिलाफ़ आम ज़ईफ़ अल अकल इसना अशरी शीया ने तकियत वाली रिवायत पर एतमाद करते हुए चाँद को देखने से शहरे रमज़ान को नाकिस मान लिया - यानी उन्तीस (29) दिन का।
शहरे रमज़ान के कामिल (30 दिन) होने वाली रिवायतें असल यकीन पर मुबय्यन हैं और नाकिस (29 दिन) मानने वाली रिवायतें गुमान पर।
अल सदूक ने कहला लिखा है कि मुम्किन है कि चाँद पहली रात का छुप जाता है मुखालिफ़ों को नज़र नहीं आता। यह उनके लिए अल्लाह कि तरफ़ से उकुबत है, सज़ा है।
इस बात कि शहादत रज़ीन कि रिवायत से पेश कि है रज़ीन का कौल है कि अबू अबदुल्लाह अलयहिस्सलाम ने फ़रमाया कि जब इमाम हुसैन (अ) के फ़रक मुबारक पर चोट लगी आप घोडे पर से गिर पडे उस वक्त शिम्र मलऊन दूर आता कि आप के सर को कतअ करे उस वक्त बुतनान अर्श से मुनादी ने यह निदा दी कि ऐ हेरज़द और इब्ने नबीयीन के बाद गुमराह होने वाली उम्मत - अल्लाह कि तरफ़ से तुमको फ़तर कि रोज़े और फ़तर कि तौफ़ीक नहीं मिलेगी। इस पर अबू अब्दुल्लाह (अ) ने फ़रमाया कि बेशक अल्लाह कि कसम मुखालिफ़ों को तोफ़ीक नहीं मिली नहीं मिलेगी जब तक हुसैन इमाम (अ) का किसास नहीं लिया जाएगा।
इस बयान से साबित हुआ कि इसना अशरी शिया अहले बसीरत फ़िकाअ रिवायत अकलिय हिसाब को हि मान कर शहरे रमज़ान को कामिल (30 दिन) मानते हैं और ज़ईफ़ अल अकल आम लोग चाँद को देख कर नाकिस (29 दिन) मानते हैं। और शरे मोहम्मदी कि सरिहन मुखालिफ़त करते हैं।
अबू अल दवानिक अब्बास ने सादिक इमाम और आपके शिया को उस रोज़ बुलाया जिस रोज़ को माहे रमज़ान कि पहली तारीख के हिसाब से सब रोज़दार थे सब आ गए तो अब्बास ने खाना मंगवाया सभी ने तकियतन खा लिया इसी तकियत वाली रिवायत को आम ज़ुआफ़ा ने कानून बना लिया और सुन्नीयों कि तरह चाँद पर लग गए और ज़अफ़री इस्माईली मुकद्दस मसलक के मुखालिफ़ हो गए।
बेहम्दोलिल्लाह हम दाऊदी बोहरा ज़आफ़री इस्माईली इस्लामी मुकद्दस मसलक से वाबिस्ता हैं। हम हि हक पर साबित हैं।
Note: अज़ीब बात है यह कि अहले सुन्नत और ज़ुआफ़ा इसना अशरी लोग चाँद कि तलाश मोहर्रम, रबीअल अव्वल, माहे रमज़ान माहे शवाल और ज़िलहिज़ इन पाँच महीनों मे हि करते हैं बाकी महीनों मे नहीं - क्यों? जब चाँद देखने पर ही महीना शुरू होता है तो बारह महीने के चाँद को तलाश करना चाहिए। जब चाँद देखने से हि महीने कि इबतिदा होती है तो हर महीने चाँद देख कर तारीख मुकर्र करना चाहिए अला हाज़ा यह लोग बारह महीने का केलेण्डर चाँद देखे बगैर कैसे बनाते हैं! इस हिसाब से वह बारह महीने का केलेण्डर नहीं बना सकते।
शिया इसनाअशरी कि मुस्तनद किताब "मजमउल बहरैन" में नफ़स के माद्दह मे लिखा है, "हुज़ैफ़ा ने मौलाना ज़ाफ़र सादिक (अ) को कहा कि लोग कहते हैं कि रसूलअल्लाह ने शहरे रमज़ान के उनतीस (29) रोज़े ज़्याद किए बनिसबत तीस (30) के। आप ने फ़रमाया वह लोग झूठे हैं। आप (रसूलअल्लाह) ने वफ़ात पाए वहां तक तीस रोज़े से कम नहीं किए। जब से अल्लाह ने आसमान ज़मीन पैदा किए तब से आज तक शहर रमज़ान तीस दिन और तीस रात से कम नहीं हुआ, नाकिस नहीं हुआ।"
इस के खिलाफ़ और भी रिवायत आई हैं इसलिए फ़िकाअ में इखतिलाफ़ हुआ। किसी ने नुकसान को (29 दिन) को ज़ायज़ समझा किसी ने नहीं। जिस फ़िकाअ ने निकसान नहीं माना वह है शैख अल मुफ़ीद के मुताबिक अबू मोहम्मद अल हसनी, अबुल कासिम, शैख अबू अब्दुल्लाह, शैख अबू मोहम्मद हारून वगैरह। हम किताब अल खमाल में लिखा है कि शिया के खास और अहले बसीरत फ़िकाअ ने फ़िर कहा है कि माहे रमज़ान हमेशा-हमेशा तीस दिन से कम नहीं।
इस के खिलाफ़ आम ज़ईफ़ अल अकल इसना अशरी शीया ने तकियत वाली रिवायत पर एतमाद करते हुए चाँद को देखने से शहरे रमज़ान को नाकिस मान लिया - यानी उन्तीस (29) दिन का।
शहरे रमज़ान के कामिल (30 दिन) होने वाली रिवायतें असल यकीन पर मुबय्यन हैं और नाकिस (29 दिन) मानने वाली रिवायतें गुमान पर।
अल सदूक ने कहला लिखा है कि मुम्किन है कि चाँद पहली रात का छुप जाता है मुखालिफ़ों को नज़र नहीं आता। यह उनके लिए अल्लाह कि तरफ़ से उकुबत है, सज़ा है।
इस बात कि शहादत रज़ीन कि रिवायत से पेश कि है रज़ीन का कौल है कि अबू अबदुल्लाह अलयहिस्सलाम ने फ़रमाया कि जब इमाम हुसैन (अ) के फ़रक मुबारक पर चोट लगी आप घोडे पर से गिर पडे उस वक्त शिम्र मलऊन दूर आता कि आप के सर को कतअ करे उस वक्त बुतनान अर्श से मुनादी ने यह निदा दी कि ऐ हेरज़द और इब्ने नबीयीन के बाद गुमराह होने वाली उम्मत - अल्लाह कि तरफ़ से तुमको फ़तर कि रोज़े और फ़तर कि तौफ़ीक नहीं मिलेगी। इस पर अबू अब्दुल्लाह (अ) ने फ़रमाया कि बेशक अल्लाह कि कसम मुखालिफ़ों को तोफ़ीक नहीं मिली नहीं मिलेगी जब तक हुसैन इमाम (अ) का किसास नहीं लिया जाएगा।
इस बयान से साबित हुआ कि इसना अशरी शिया अहले बसीरत फ़िकाअ रिवायत अकलिय हिसाब को हि मान कर शहरे रमज़ान को कामिल (30 दिन) मानते हैं और ज़ईफ़ अल अकल आम लोग चाँद को देख कर नाकिस (29 दिन) मानते हैं। और शरे मोहम्मदी कि सरिहन मुखालिफ़त करते हैं।
अबू अल दवानिक अब्बास ने सादिक इमाम और आपके शिया को उस रोज़ बुलाया जिस रोज़ को माहे रमज़ान कि पहली तारीख के हिसाब से सब रोज़दार थे सब आ गए तो अब्बास ने खाना मंगवाया सभी ने तकियतन खा लिया इसी तकियत वाली रिवायत को आम ज़ुआफ़ा ने कानून बना लिया और सुन्नीयों कि तरह चाँद पर लग गए और ज़अफ़री इस्माईली मुकद्दस मसलक के मुखालिफ़ हो गए।
बेहम्दोलिल्लाह हम दाऊदी बोहरा ज़आफ़री इस्माईली इस्लामी मुकद्दस मसलक से वाबिस्ता हैं। हम हि हक पर साबित हैं।
Note: अज़ीब बात है यह कि अहले सुन्नत और ज़ुआफ़ा इसना अशरी लोग चाँद कि तलाश मोहर्रम, रबीअल अव्वल, माहे रमज़ान माहे शवाल और ज़िलहिज़ इन पाँच महीनों मे हि करते हैं बाकी महीनों मे नहीं - क्यों? जब चाँद देखने पर ही महीना शुरू होता है तो बारह महीने के चाँद को तलाश करना चाहिए। जब चाँद देखने से हि महीने कि इबतिदा होती है तो हर महीने चाँद देख कर तारीख मुकर्र करना चाहिए अला हाज़ा यह लोग बारह महीने का केलेण्डर चाँद देखे बगैर कैसे बनाते हैं! इस हिसाब से वह बारह महीने का केलेण्डर नहीं बना सकते।
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- Joined: Sun Nov 07, 2010 11:26 pm
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
Eid wo manaate hai Chaand ko dekh kar
Chaand tou wo dekhe jiskaa Chaand saa rehbar naa hoo ......
Chaand tou wo dekhe jiskaa Chaand saa rehbar naa hoo ......
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
Be careful though. Sometimes even 'Chand sa Rehbar' has proclivity to start celebrations too early. Remember how Bohras jumped the gun on Sayedna's 100 Birthday Celebration by a year.murtaza2152 wrote:Eid wo manaate hai Chaand ko dekh kar
Chaand tou wo dekhe jiskaa Chaand saa rehbar naa hoo ......
Quran declares that the orbits of the Sun and the Moon are 'fixed' and hence it is important to calculate correctly the dates by utilzing the intelligence and intellect that Allah has blessed us with.
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
Yeh jhooth hai ke tumhara rehbar hai chaand saamurtaza2152 wrote:Eid wo manaate hai Chaand ko dekh kar
Chaand tou wo dekhe jiskaa Chaand saa rehbar naa hoo ......
woh to hai tassawur ek asli munafiq ka.
Ki tawheen Quran ki aur mazaakh banaya Kaaba ka
Yeh zinda laash hai ek numaaish Allah ke azaab ka
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
kis ko hai maloom ke yeh allah ka azaab hai ya shaitan ki chalaki
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
May be boththink wrote:kis ko hai maloom ke yeh allah ka azaab hai ya shaitan ki chalaki
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- Joined: Tue Oct 07, 2008 5:34 pm
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
Shaitan bhi chalaki apni marzi se nahi kar sakta, isme bhi Allah ki manzuri zaroori hai !!think wrote:kis ko hai maloom ke yeh allah ka azaab hai ya shaitan ki chalaki
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- Joined: Tue Mar 28, 2006 5:01 am
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
wah bhai wah, mnoorani saab,mnoorani wrote: Yeh jhooth hai ke tumhara rehbar hai chaand saa
woh to hai tassawur ek asli munafiq ka.
Ki tawheen Quran ki aur mazaakh banaya Kaaba ka
Yeh zinda laash hai ek numaaish Allah ke azaab ka
aap to sach me hi bade chupe rustom nikle!
aap peshawar shayar nahi ho, lekin dil ke jazbaaton ka bade aasaani se izhaar kar lete ho..allah aapki soch aur qalam dono ko nek taufiq ata bakshe..
Re: Ramzaan always-always of only 30 days
shaitan me allah ki marzi nahin hai. shaitan ko khulli raza hai ta roze qiamat.