Bohra whatsapp duniya
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Re: Bohra whatsapp duniya
List of salaams, hoob, santhaa collections, compulsory by force collections etc
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Re: Bohra whatsapp duniya
*-----अहले गोधरा------*
*रोशनी से नहाई हुई गलियों से गुज़र कर*
*रोया था बहुत शाम में आबिदे -मुज्तर*
*ये कैसा चहल्लूम है हुसैन इब्ने अली का..??*
*याद आयेगा जैनब को भी वो शाम का मंज़र...!!*
*गोधरा में ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चहल्लुम के नाम पर जिस तरह का जश्न का माहौल है उसने शियत का लबादा ओढ़े हुए कुफियों और शामियों को बेनकाब किया है। किसी भी शख्सियत का मुहर्रम में वाज मजलिस या चहल्लुम के लिए आना ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और सय्यदों के गम से बढ़कर नहीं हो सकता। इस तरह के जश्न, रोशनियां, आतिशबाजीयां अहले तश्ययो मकतब ओ फिक्र में नाकाबिले क़ुबूल है। दरअसल 'आहीन आहीन सुम्मा आहीन' की आवाज़ पर रोने की इज्तिमाई आवाज़ निकाल कर गम की रस्म अदा करने वाली कौम का इस मुक़ाम पर आना लाज़मी ही था।*
*शक्सियतपरस्ती में मुलव्विस इस कौम का आलम सामरी के बनाए हुए उस बछड़े की तरह है जिससे मौजीजे और चमत्कार की उम्मीद में हर कोई परस्तीस करने लगा था, जबकि मोजिजे और चमत्कार की कुदरत अल्लाह सुबहानहू के सिवा किसी के पास नहीं है।*
*हम शिया इस्माइलीया तय्यबिया फिरके में गुजिश्ता कुछ दहाइयों से मुहर्रम के रूसूमात और रिवायतें बदलकर रख दी गई है। अब लोगों के दिलों में ये बात बैठा दी गई है की ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अहले बैत की शहादत का गम सिर्फ़ तीजे तक ही होता है (हालांकि इसके पीछे उनका ज़ाती मफाद छुपा हुआ है)*
*आज की तैयार हो रही नस्ल को ये खबर ही नही की पहले मोहर्रम के 40 दिन किस तरह गुजारे जाते थे??*
*किसी से मुहब्बत और अकीदत जब गुलू की हद तक पहुंच जाता है तब सही और गलत का फ़ैसला मुश्किल हो जाता है। अगर कोई किसी की गुलु की हद तक पहुंच गई मुहब्बत की इस्लाह की कोशिश करेगा तो लोग उसी को अपना दुश्मन समझकर उससे अदावत पाल लेंगे और उसकी जान के दुश्मन बन जायेंगे।*
*डर है चबा न जाए कलेजा निकालकर....*
*रहते है तेरे शहर में हिंदा मिज़ाज लोग*
Abbas Ali Munshi
Indore
*रोशनी से नहाई हुई गलियों से गुज़र कर*
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*हम शिया इस्माइलीया तय्यबिया फिरके में गुजिश्ता कुछ दहाइयों से मुहर्रम के रूसूमात और रिवायतें बदलकर रख दी गई है। अब लोगों के दिलों में ये बात बैठा दी गई है की ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अहले बैत की शहादत का गम सिर्फ़ तीजे तक ही होता है (हालांकि इसके पीछे उनका ज़ाती मफाद छुपा हुआ है)*
*आज की तैयार हो रही नस्ल को ये खबर ही नही की पहले मोहर्रम के 40 दिन किस तरह गुजारे जाते थे??*
*किसी से मुहब्बत और अकीदत जब गुलू की हद तक पहुंच जाता है तब सही और गलत का फ़ैसला मुश्किल हो जाता है। अगर कोई किसी की गुलु की हद तक पहुंच गई मुहब्बत की इस्लाह की कोशिश करेगा तो लोग उसी को अपना दुश्मन समझकर उससे अदावत पाल लेंगे और उसकी जान के दुश्मन बन जायेंगे।*
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Abbas Ali Munshi
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Re: Bohra whatsapp duniya
Apparently this Burhani goon guard is claiming that Bohris are selling their Ridas and SKI suits, SKI stand for SAYA KURTA IZAAR, (not to be confused for real SKI suits)
Then these Waagris sell them on to outsiders who then come to our masjids and steal shoes and other utensils, I couldn't upload the telephone call audio that is doing rounds in the Bohri WhatsApp world.
I'm thinking, have the intellect Bohris throwing away Rida and SKI suits, maybe they've had enough of it all? Allaho Aalam
Then these Waagris sell them on to outsiders who then come to our masjids and steal shoes and other utensils, I couldn't upload the telephone call audio that is doing rounds in the Bohri WhatsApp world.
I'm thinking, have the intellect Bohris throwing away Rida and SKI suits, maybe they've had enough of it all? Allaho Aalam
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Re: Bohra whatsapp duniya
@juzer Esmail, i struggled to understand what Abbas Ali Munshi wrote then realised many others too might face the same issue.juzer esmail wrote: ↑Sun Sep 03, 2023 3:59 am *-----अहले गोधरा------*
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*गोधरा में ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चहल्लुम के नाम पर जिस तरह का जश्न का माहौल है उसने शियत का लबादा ओढ़े हुए कुफियों और शामियों को बेनकाब किया है। किसी भी शख्सियत का मुहर्रम में वाज मजलिस या चहल्लुम के लिए आना ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और सय्यदों के गम से बढ़कर नहीं हो सकता। इस तरह के जश्न, रोशनियां, आतिशबाजीयां अहले तश्ययो मकतब ओ फिक्र में नाकाबिले क़ुबूल है। दरअसल 'आहीन आहीन सुम्मा आहीन' की आवाज़ पर रोने की इज्तिमाई आवाज़ निकाल कर गम की रस्म अदा करने वाली कौम का इस मुक़ाम पर आना लाज़मी ही था।*
*शक्सियतपरस्ती में मुलव्विस इस कौम का आलम सामरी के बनाए हुए उस बछड़े की तरह है जिससे मौजीजे और चमत्कार की उम्मीद में हर कोई परस्तीस करने लगा था, जबकि मोजिजे और चमत्कार की कुदरत अल्लाह सुबहानहू के सिवा किसी के पास नहीं है।*
*हम शिया इस्माइलीया तय्यबिया फिरके में गुजिश्ता कुछ दहाइयों से मुहर्रम के रूसूमात और रिवायतें बदलकर रख दी गई है। अब लोगों के दिलों में ये बात बैठा दी गई है की ईमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और अहले बैत की शहादत का गम सिर्फ़ तीजे तक ही होता है (हालांकि इसके पीछे उनका ज़ाती मफाद छुपा हुआ है)*
*आज की तैयार हो रही नस्ल को ये खबर ही नही की पहले मोहर्रम के 40 दिन किस तरह गुजारे जाते थे??*
*किसी से मुहब्बत और अकीदत जब गुलू की हद तक पहुंच जाता है तब सही और गलत का फ़ैसला मुश्किल हो जाता है। अगर कोई किसी की गुलु की हद तक पहुंच गई मुहब्बत की इस्लाह की कोशिश करेगा तो लोग उसी को अपना दुश्मन समझकर उससे अदावत पाल लेंगे और उसकी जान के दुश्मन बन जायेंगे।*
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Abbas Ali Munshi
Indore
used Google Translate to help the Hindi-challenged readers (many like myself, included), partake of what has been written
*walking through the streets bathed in light*
Abide-Mujtar cried a lot in the evening
* What kind of charm is this of Hussain ibn Ali..??*
* Zainab will also remember that evening scene...!!*
The kind of celebratory atmosphere in Godhra in the name of Imam Hussain (a.s.) has exposed the Kufis and Shamis wearing the cloak of Shia. The coming of any personality for Waj Majlis or Chahallum in Muharram cannot be greater than the sorrow of Imam Hussain (a.s.) and the Sayyids.
Such celebrations, lights and fireworks are unacceptable in the minds of the people. In fact, it was natural for the community which used to perform the ritual of mourning by making communal sounds of crying on the sound of 'Aheen Aheen Summa Aheen', to come to this point.*
*In terms of personality, the condition of this community is like the calf created by the Samaritan whom everyone started worshiping in the hope of miracles and wonders, whereas no one has the power of miracles and wonders except Allah Subhanahu.*
*We, the Shia Ismailiyya Tayyabiya sect, have changed the rules and traditions of Muharram from some points of view. Now this thing has been inculcated in the hearts of the people that the sorrow for the martyrdom of Imam Hussain (a.s.) and the Ahl-e-Bait extends only to the younger generation (although their caste affiliation is hidden behind this)*
Today's rising generation is not even aware of how the 40 days of Muharram were spent earlier??
* When love and devotion for someone reaches the extent of Gulu, then the decision of right and wrong becomes difficult. If someone tries to reform someone's love that has reached the limit of slavery, then people considering him as their enemy will enmity with him and become the enemy of his life.
* is afraid that the heart may be chewed out.... *
*Hind type people live in your city*
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Re: Bohra whatsapp duniya
Munshi ji
Abdes will say chehlum apni jagah che pun maula aaya che to roshni ane fatara karwa joiyye
ask them if their father died and if maula would come will they still light crackers and do all those Roshni
Abdes will say chehlum apni jagah che pun maula aaya che to roshni ane fatara karwa joiyye
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Re: Bohra whatsapp duniya
People are keeping this status on whatsapp again and again, its really annoying.
Look at what shirk they are asking from Maula, and the tragedy is that they dont even realise what they are doing, only if they start understanding the quran (instead of memorizing) they will see the truth.
Look at what shirk they are asking from Maula, and the tragedy is that they dont even realise what they are doing, only if they start understanding the quran (instead of memorizing) they will see the truth.
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Re: Bohra whatsapp duniya
they dont even know the meaning of kismat and shirkHaider_Ali wrote: ↑Tue Sep 12, 2023 5:26 am People are keeping this status on whatsapp again and again, its really annoying.
Look at what shirk they are asking from Maula, and the tragedy is that they dont even realise what they are doing, only if they start understanding the quran (instead of memorizing) they will see the truth.
they just see others doing and they follow
Re: Bohra whatsapp duniya
Moula has written our PM's kismat maybe try and it will change yours too if you upload that status.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Mazoon e dawat who served for 50 years was lanati and a magician and what not according to mufaddali clan. But according to naqiya wife of Hussain it is okay to visit ganpati mandap and meet to pujari and learn more from him. That's the so called royal for you.
Her latest post of Instagram
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Re: Bohra whatsapp duniya
Hussain is in Karachi and naqiyah Ben is learning from pujari about the life lessons. Why can't she learn from her husband and father in law after all they know it all, no?
Normal bohra kids are taught to remain in bohra circles only. They go to bohra schools and make bohra friends only. While these kothari kids are taught to learn from over all experience and above the religion lines.
Damn
Normal bohra kids are taught to remain in bohra circles only. They go to bohra schools and make bohra friends only. While these kothari kids are taught to learn from over all experience and above the religion lines.
Damn
Re: Bohra whatsapp duniya
Hadith says: ‘Utlub il ‘ilma wa law fis-Sin.'
Seek knowledge even if you have to go to China.
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Re: Bohra whatsapp duniya
true then SMS should abandon the claim of I know it all
chirag tale andhera?
chirag tale andhera?
Re: Bohra whatsapp duniya
We bohra's are closest to Hindu religion and in spite of dawa that we are on the path of truth we are going toward shirk. I won't be surprise Muffi would be secretly visiting Lal baug cha Raja for blessingFatema Yamani wrote: ↑Sat Sep 23, 2023 2:38 pm Mazoon e dawat who served for 50 years was lanati and a magician and what not according to mufaddali clan. But according to naqiya wife of Hussain it is okay to visit ganpati mandap and meet to pujari and learn more from him. That's the so called royal for you.
Her latest post of Instagram
Our kids in Jamea tus Saifia are killing themselves and smoking e-cigarettes while these people are deep into Nasha-barzi. I heard there is rampant bullying, harassment and student Ragging going on in Jamea, can an insider confirm these news. Recently a student in marol jamea killed himself due to ragging and some were caught smoking e-cigarettes. Muffi summoned the parents of the deceased to Dubai and ask them to hide publicity
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Re: Bohra whatsapp duniya
Most jamiya students are from rich family now. They have never seen hardship for them jamiya is all about topi saya kurta and roaming around. Don't be surprise if your future Amil is sitting in his office drunked and smoking.
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Re: Bohra whatsapp duniya
When money and power unites and when religion becomes a tool to extort money. The coming generation always becomes addicted to Nasha baazi.
Muawiya and yazeed faced same fate.
Muawiya and yazeed faced same fate.
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Re: Bohra whatsapp duniya
He is delivering messages on Facebook, a platform that receives direct funding from Israel and generates profits as a result.
It's wise to approach everything propagated by so-called 'preachers' with a healthy dose of skepticism.
It's wise to approach everything propagated by so-called 'preachers' with a healthy dose of skepticism.
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Re: Bohra whatsapp duniya
He is delivering messages on Facebook, a platform that receives direct funding from Israel and generates profits as a result.
It's wise to approach everything propagated by so-called 'preachers' with a healthy dose of skepticism.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Bhori girl murders someone in India ...taken away by police .
Re: Bohra whatsapp duniya
abbasthegreat wrote: ↑Sat Nov 04, 2023 11:22 am Bhori girl murders someone in India ...taken away by police .
Always post a link to authenticate your news, such one-liners doesn't make any sense
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Re: Bohra whatsapp duniya
*समाज की बदलती पहचान*
हमारी क़ौम दो ग़लत दिशाओं में तेज़ रफ़्तारी से आगे बढ़ रही है। एक तरफ़ शिर्क और दूसरी तरफ़ आर्थिक अपराध। इन ग़लतकारियों की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के सर है जिन्हें समाज की हर अच्छाई की क्रेडिट दी जाती है।
दरअसल जिनका काम मोमिनों को अल्लाह और रसूल की तरफ़ दावत देना था उन्होंने ख़ुद को ही अक़ीदे का मरकज़ बना लिया। इस्लाम का बुनियादी अक़ीदा तो ये है कि मोमिन के हर इरादे और अमल में सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी मक़सूद हो। मगर अवाम के ज़हनों में *"मौला नी ख़ुशी"* का अक़ीदा इस तरह रासिख़ कर दिया गया है कि आम बोहरा मौला की ख़ुशी और नाराज़गी को ही दीन और दुनिया की कामयाबी और नाकामी की वजह मानता है।
किसी शख़्स को देखना-सुनना सवाब, क़दमबोसी और ज़ियाफ़त देना सवाब यानि उनकी हर अदा में बरकत और सवाब का तसव्वुर रखना और उन्हें नफ़े नुक़सान का मालिक समझना ही तो शख़्सियत परस्ती है। यहीं से शिर्क का दरवाज़ा खुलता है। शख़्सियत परस्ती फिर तस्वीर परस्ती तक ले जाती है। जिसकी मिसालें हम देख रहे हैं।
इल्मे दीन से ख़ाली इंसान जब शिर्क में मुलव्विस होता है तो फिर वो किसी भी हद तक जा सकता है। साधुसंतों के पैर छूते हुए, जैन मुनियों के पीछे भागते हुए और बुतों पर माला डालते हुए बोहरों की तस्वीरें हम देखते रहते हैं और किसी को कराहियत महसूस नहीं होती। ज़ाहिर है जब ये सब काम किसी की मुहब्बत में हमारे यहां भी हो रहे हों तो धर्म के ठेकेदारों के पास उनको रोकने का अख़्लाक़ी हक़ बचता ही नहीं। नतीजतन उनकी ख़ामोशी, भटके हुए लोगों को मज़ीद भटकने में मदद करती है।
दूसरा मामला क़ौम में बढ़ते आर्थिक अपराध का है। दिन ब दिन बोहरा मुजरिमों की फ़ेहरिस्त तवील होती जा रही है। सिस्टम में बैठे हुए लोगों पर भी अक्सर उंगलियां उठती हैं। दावत के निज़ाम का बढ़ता आर्थिक दबाव और त्यौहारों से लेकर ज़ाती प्रोग्रामों तक बढ़ती चकाचौंध ने पैसा कमाने की होड़ पैदा कर दी है।
जब क़ौम के पेशवा ख़ुद, अमीरी के रोब से अपने चाहने वालों पर दबदबा क़ायम करना चाहते हों। जब उनकी शाहाना तर्ज़े ज़िंदगी, आलीशान महल, महंगी गाड़ियों के आगे उनके अक़ीदतमंद ख़ुद को इतना अदना महसूस करें कि उन में ग़ुलामी का एहसास भर जाए। मक़ामी जमात से ले कर सैफ़ी महल तक केवल सरमायादारों को ही अहमियत दी जाती हो। जहां बग़ैर पैसों के कोई काम न होता हो। जहां अक़ीदा रखने वालों से ही अक़ीदे की क़ीमत वसूली जाती हो। जहां तालीमी इदारे की फ़ीस भी सब की ताक़त से बाहर हो। जहां दौलत ही समाज में इज़्ज़त, आख़िरत की कामयाबी और रूहानी पेशवा तक रसाई की ज़मानत बन गई हो वहां अमीर बनने की कोशिश हर शख़्स के लिए सामाजिक और धार्मिक ज़रूरत बन ही जाएगी। चूंकि नेकी और किरदार को कभी मेयार बनाया ही नहीं गया इसलिए अगर दौलत कमाना ही अवाम का नस्बुल ऐन बन जाए तो उस में हैरत की बात नहीं है।
हम देखते हैं कि हमारे यहां दुआएं भी "आख़िरत की कामयाबी" की जगह, "आल में-माल में" बरकत की दी जाती हैं। रहबर की दुआओं की बरकत का हवाला देते हुए भी, अवाम की आसूदगी और ख़ुशहाली को ही कामयाबी बताया जाता है। ग़रज़ पैसा ही कामयाबी का मेयार बनाया गया है। यही वजह है कि रहबर की अमीरी और शाही ठाठ-बाट को अक़ीदतमंद उनके सच्चे और हक़ पर होने की दलील समझते हैं। हालांकि रूहानी शख़्सियत की पहचान तो उसका किरदार और तक़वा होता है, मालो दौलत नहीं।
आम बोहरा इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ है कि इस समाज में इबादत गुज़ार और नेक होने से कोई बड़ा नहीं होता बल्कि हैसियत से होता है। और हैसियत बनती है दौलत से। इसीलिए जो लोग शेख़ के टायटल के लिए लाखों रुपए देते हैं, वो दरअसल हैसियत ख़रीदते हैं ताकि ख़ुद को बड़ा महसूस कर सकें। लेकिन अमीर बनने की कोशिश में कुछ लोग सही ग़लत का पास नहीं रख पाते और अपराध की हद तक चले जाते हैं।
जिस दीने इस्लाम ने कहा है कि "अल्लाह के यहां ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो ज़्यादा परहेज़गार है" (क़ुरआन 49:13) उसी इस्लाम के नाम पर अपने बेचे हुए टायटल की अहमियत बताने के लिए अल्लाह के घर में ही दरजे बना दिए गए हैं।
अल्लाह सब को दीन और क़ुरआन समझने की तौफ़ीक़ अता करे ताकि बादशाहों वाली ज़िंदगी जीने वालों को अपना आदर्श बनाने की बजाय चटाई पर सोने वाले और जौं का आटा खाने वाले रसूले करीम (स.) और मौला अली (क.) को अपना आदर्श बनाए। इंशाअल्लाह शिर्क से भी बचेंगे और आर्थिक अपराध से भी।
Safdar Shaamee
हमारी क़ौम दो ग़लत दिशाओं में तेज़ रफ़्तारी से आगे बढ़ रही है। एक तरफ़ शिर्क और दूसरी तरफ़ आर्थिक अपराध। इन ग़लतकारियों की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं के सर है जिन्हें समाज की हर अच्छाई की क्रेडिट दी जाती है।
दरअसल जिनका काम मोमिनों को अल्लाह और रसूल की तरफ़ दावत देना था उन्होंने ख़ुद को ही अक़ीदे का मरकज़ बना लिया। इस्लाम का बुनियादी अक़ीदा तो ये है कि मोमिन के हर इरादे और अमल में सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की ख़ुशी मक़सूद हो। मगर अवाम के ज़हनों में *"मौला नी ख़ुशी"* का अक़ीदा इस तरह रासिख़ कर दिया गया है कि आम बोहरा मौला की ख़ुशी और नाराज़गी को ही दीन और दुनिया की कामयाबी और नाकामी की वजह मानता है।
किसी शख़्स को देखना-सुनना सवाब, क़दमबोसी और ज़ियाफ़त देना सवाब यानि उनकी हर अदा में बरकत और सवाब का तसव्वुर रखना और उन्हें नफ़े नुक़सान का मालिक समझना ही तो शख़्सियत परस्ती है। यहीं से शिर्क का दरवाज़ा खुलता है। शख़्सियत परस्ती फिर तस्वीर परस्ती तक ले जाती है। जिसकी मिसालें हम देख रहे हैं।
इल्मे दीन से ख़ाली इंसान जब शिर्क में मुलव्विस होता है तो फिर वो किसी भी हद तक जा सकता है। साधुसंतों के पैर छूते हुए, जैन मुनियों के पीछे भागते हुए और बुतों पर माला डालते हुए बोहरों की तस्वीरें हम देखते रहते हैं और किसी को कराहियत महसूस नहीं होती। ज़ाहिर है जब ये सब काम किसी की मुहब्बत में हमारे यहां भी हो रहे हों तो धर्म के ठेकेदारों के पास उनको रोकने का अख़्लाक़ी हक़ बचता ही नहीं। नतीजतन उनकी ख़ामोशी, भटके हुए लोगों को मज़ीद भटकने में मदद करती है।
दूसरा मामला क़ौम में बढ़ते आर्थिक अपराध का है। दिन ब दिन बोहरा मुजरिमों की फ़ेहरिस्त तवील होती जा रही है। सिस्टम में बैठे हुए लोगों पर भी अक्सर उंगलियां उठती हैं। दावत के निज़ाम का बढ़ता आर्थिक दबाव और त्यौहारों से लेकर ज़ाती प्रोग्रामों तक बढ़ती चकाचौंध ने पैसा कमाने की होड़ पैदा कर दी है।
जब क़ौम के पेशवा ख़ुद, अमीरी के रोब से अपने चाहने वालों पर दबदबा क़ायम करना चाहते हों। जब उनकी शाहाना तर्ज़े ज़िंदगी, आलीशान महल, महंगी गाड़ियों के आगे उनके अक़ीदतमंद ख़ुद को इतना अदना महसूस करें कि उन में ग़ुलामी का एहसास भर जाए। मक़ामी जमात से ले कर सैफ़ी महल तक केवल सरमायादारों को ही अहमियत दी जाती हो। जहां बग़ैर पैसों के कोई काम न होता हो। जहां अक़ीदा रखने वालों से ही अक़ीदे की क़ीमत वसूली जाती हो। जहां तालीमी इदारे की फ़ीस भी सब की ताक़त से बाहर हो। जहां दौलत ही समाज में इज़्ज़त, आख़िरत की कामयाबी और रूहानी पेशवा तक रसाई की ज़मानत बन गई हो वहां अमीर बनने की कोशिश हर शख़्स के लिए सामाजिक और धार्मिक ज़रूरत बन ही जाएगी। चूंकि नेकी और किरदार को कभी मेयार बनाया ही नहीं गया इसलिए अगर दौलत कमाना ही अवाम का नस्बुल ऐन बन जाए तो उस में हैरत की बात नहीं है।
हम देखते हैं कि हमारे यहां दुआएं भी "आख़िरत की कामयाबी" की जगह, "आल में-माल में" बरकत की दी जाती हैं। रहबर की दुआओं की बरकत का हवाला देते हुए भी, अवाम की आसूदगी और ख़ुशहाली को ही कामयाबी बताया जाता है। ग़रज़ पैसा ही कामयाबी का मेयार बनाया गया है। यही वजह है कि रहबर की अमीरी और शाही ठाठ-बाट को अक़ीदतमंद उनके सच्चे और हक़ पर होने की दलील समझते हैं। हालांकि रूहानी शख़्सियत की पहचान तो उसका किरदार और तक़वा होता है, मालो दौलत नहीं।
आम बोहरा इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ है कि इस समाज में इबादत गुज़ार और नेक होने से कोई बड़ा नहीं होता बल्कि हैसियत से होता है। और हैसियत बनती है दौलत से। इसीलिए जो लोग शेख़ के टायटल के लिए लाखों रुपए देते हैं, वो दरअसल हैसियत ख़रीदते हैं ताकि ख़ुद को बड़ा महसूस कर सकें। लेकिन अमीर बनने की कोशिश में कुछ लोग सही ग़लत का पास नहीं रख पाते और अपराध की हद तक चले जाते हैं।
जिस दीने इस्लाम ने कहा है कि "अल्लाह के यहां ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो ज़्यादा परहेज़गार है" (क़ुरआन 49:13) उसी इस्लाम के नाम पर अपने बेचे हुए टायटल की अहमियत बताने के लिए अल्लाह के घर में ही दरजे बना दिए गए हैं।
अल्लाह सब को दीन और क़ुरआन समझने की तौफ़ीक़ अता करे ताकि बादशाहों वाली ज़िंदगी जीने वालों को अपना आदर्श बनाने की बजाय चटाई पर सोने वाले और जौं का आटा खाने वाले रसूले करीम (स.) और मौला अली (क.) को अपना आदर्श बनाए। इंशाअल्लाह शिर्क से भी बचेंगे और आर्थिक अपराध से भी।
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Re: Bohra whatsapp duniya
allbird wrote: ↑Sun Nov 05, 2023 6:13 amabbasthegreat wrote: ↑Sat Nov 04, 2023 11:22 am Bhori girl murders someone in India ...taken away by police .
Always post a link to authenticate your news, such one-liners doesn't make any sense
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Re: Bohra whatsapp duniya
still details missing, whose murder for what where when
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Re: Bohra whatsapp duniya
Masjid E AQSA Palestine Kay Imam Shia Q Howay ? Mufti Fazal Hamdard
Do read the comment seems like Sunni Muslims are entering shia islam in groups now - Mashallah
https://www.youtube.com/watch?v=PgyKD-0Rt2k
Do read the comment seems like Sunni Muslims are entering shia islam in groups now - Mashallah
https://www.youtube.com/watch?v=PgyKD-0Rt2k
Re: Bohra whatsapp duniya
Sheikh Ali sadiq wrote: ↑Tue Nov 07, 2023 12:07 pm still details missing, whose murder for what where when
https://udaipurtimes.com/crime/live-upd ... 622302.htm
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Re: Bohra whatsapp duniya
Sounds like a great movie plot
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Re: Bohra whatsapp duniya
UTTHO MERE PAKISTAN!
Mufaddal Saifuddin was awarded the Nishan e Pakistan (Pakistan’s highest civilian award). This award is taking a number of people by surprise because the recipient is neither a head of state, has not been considered worthy of any award by his home country, has a poor record of any public engagement and is the Vice Chancellor of a prominent Indian university where his role has been sketchy.
This raises the question of what the Syedna may have done to be considered worthy of this award. For once, most people are stumped. The Syedna has been in office for only ten years following the passing away of his father. The Syedna has publicly championed the cause of female genital mutilation, patriarchy and madrasa-styled education. The Syedna has virtually no YouTube persona and virtually all of his statements pertain to the safe religious domain where he is only articulating the already-articulated. The Syedna is the spiritual leader of community of not more than a million the world over and even if one assumes the population of this community to be 200,000 in Pakistan, it would still be a speck in a country with a population of around 240 million. More seriously, the Syedna has been accused of usurping the office that he holds and judgement on this longstanding succession battle is pending announcement in the Indian high court.
This raises a mysterious question: just who is this Mumbaikar? What makes heads of state of questionable secular credentials embrace him in masjids during Moharram sermons? What makes tottering economies give him their highest civilian awards? What makes countries welcome him as a State Guest when he is neither political, statesmanlike or social reformer with virtually no profile – not a single recorded interview exists in the public domain - outside his own community? What do award-giving governments see in him that most people fail to perceive? What does one make of the fact that the institution he runs is feared for its North Korea-like grip on the social existence of its followers?
These represent a number of questions with no answer. The question that emerges is one of doubt. Could this then be a scam? Is the man attempting to buy a PR-manufactured image that projects him as a statesman when nobody even knows who he really is? Or are civilian awards become so commonplace that they are given out to just about anyone without fact-finding ascertaining ‘who is clean?’ and ‘who is not clean?’ Or is it just another instance of a financially (or morally) impoverished country ‘selling’ awards to whoever can buy?
As a Pakistani, I am ashamed. Booting out Imran was the pits. Keeping him out by whatever means was how cheap we would stoop. And now selling awards to insular people of questionable backgrounds is terrible. If only we could see what India has done and where we have descended…
Mufaddal Saifuddin was awarded the Nishan e Pakistan (Pakistan’s highest civilian award). This award is taking a number of people by surprise because the recipient is neither a head of state, has not been considered worthy of any award by his home country, has a poor record of any public engagement and is the Vice Chancellor of a prominent Indian university where his role has been sketchy.
This raises the question of what the Syedna may have done to be considered worthy of this award. For once, most people are stumped. The Syedna has been in office for only ten years following the passing away of his father. The Syedna has publicly championed the cause of female genital mutilation, patriarchy and madrasa-styled education. The Syedna has virtually no YouTube persona and virtually all of his statements pertain to the safe religious domain where he is only articulating the already-articulated. The Syedna is the spiritual leader of community of not more than a million the world over and even if one assumes the population of this community to be 200,000 in Pakistan, it would still be a speck in a country with a population of around 240 million. More seriously, the Syedna has been accused of usurping the office that he holds and judgement on this longstanding succession battle is pending announcement in the Indian high court.
This raises a mysterious question: just who is this Mumbaikar? What makes heads of state of questionable secular credentials embrace him in masjids during Moharram sermons? What makes tottering economies give him their highest civilian awards? What makes countries welcome him as a State Guest when he is neither political, statesmanlike or social reformer with virtually no profile – not a single recorded interview exists in the public domain - outside his own community? What do award-giving governments see in him that most people fail to perceive? What does one make of the fact that the institution he runs is feared for its North Korea-like grip on the social existence of its followers?
These represent a number of questions with no answer. The question that emerges is one of doubt. Could this then be a scam? Is the man attempting to buy a PR-manufactured image that projects him as a statesman when nobody even knows who he really is? Or are civilian awards become so commonplace that they are given out to just about anyone without fact-finding ascertaining ‘who is clean?’ and ‘who is not clean?’ Or is it just another instance of a financially (or morally) impoverished country ‘selling’ awards to whoever can buy?
As a Pakistani, I am ashamed. Booting out Imran was the pits. Keeping him out by whatever means was how cheap we would stoop. And now selling awards to insular people of questionable backgrounds is terrible. If only we could see what India has done and where we have descended…
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Re: Bohra whatsapp duniya
Maulani complaint kidhi chhe