Bohra whatsapp duniya
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Re: Bohra whatsapp duniya
*हमीं को नज़्मे गुलिस्तां पे अख़्तियार नहीं*
पैग़म्बर हो, इमाम हो, वली हो या आम मुस्लिम....दीन की ख़िदमत का फ़रीज़ा निभाने वाले हर शख़्स के लिए ज़रूरी है क़ुर्बानी। ये काम अल्लाह की रिज़ा और उसके बंदों की फ़लाहो बहबूद के लिए किया जाता है। अल्लाह की जानिब बुलाने वाले शख़्स को अपने किरदार और अपने रहन-सहन से दूसरों के लिए नज़ीर भी क़ायम करना होता है। अल्लाह के मुत्तक़ी बंदों के लिए दौलत और जायदाद कुछ हैसियत नहीं रखती। उनकी नज़र आख़िरत पर होती है और उनकी अमली ज़िंदगी क़ुरआन की इस आयत का मज़हर होती है *"और दुनिया की ज़िंदगी तो धोके के सामान के सिवा कुछ नहीं"* (आले इमरान 3:185) पैग़म्बर ए इस्लाम (स.अ.व स.) और मौला अली (क.) की ज़िंदगियां इसकी बेहतरीन मिसाल हैं। ये ऐसी हस्तियां हैं कि....
*उनकी निगाहे नाज़ में दुनिया की सल्तनत/*
*बोसीदा जूतियों से भी कमतर दिखाई दे//*
अल्लाह वालों का असल किरदार यही होता है। यही किरदार, हमेशा हमेशा के लिए तारीख़ में दर्ज किया जाता है। वर्ना अमीरी की शानो-शौकत आदमी की सांसें थमते ही उसके वारिस को मुंतक़िल हो जाती है और मरहूम को चंद दिनों की रुसूमात के बाद भुला दिया जाता है।
जब तक दीन और क़ौम की ख़िदमत में दौलत की चमक-दमक नहीं थी तब तक उस में इख़्लास था। उस दौर में क़ौम की रहबरी का बीड़ा उठाने का मतलब था अपने वक़्त और सरमाए की क़ुर्बानी। वक़्त के साथ मज़हब कमाई का ज़रिया बनता गया। इख़्लास घटने लगा। पैसा ताक़त ले कर आता है और ताक़त हुकूमत में बदलने लगती है। जैसे जैसे दुनियादारी के तक़ाज़े बढ़ने लगते हैं, अवाम में इल्म और इबादत से दूरी बढ़ने लगती है। ऐसे में इक ऐसे रूहानी पेशवा की ज़रूरत होती है जिसके इल्म पर भरोसा किया जा सके और उसके बताए रास्ते पर चल कर अपनी आख़िरत का सामान कर सकें। नतीजतन लोग दीनी मुआमलात में धर्मगुरु पर आँख बंद कर के भरोसा करने लगते हैं। लाइल्मी और निर्भरता धीरे धीरे महकूमियत में बदलने लगती है। महकूमियत की ग़ुलामाना सोच धर्मगुरु को इतना ताक़तवर बना देती है कि फिर वो हाकिम के लहजे में बात करने लगता है।
वक़्त के साथ ख़ुद साख़्ता हाकिम के ग़ुरूर का ग्राफ़ इस ऊँचाई तक चला जाता है जहाँ से उसे इंसान बहुत बौने दिखाई देने लगते हैं और बलंदी का एहसास उस में ख़ुदाई का एहसास पैदा कर देता है। दूसरी तरफ़ अवाम में शख़्सियत परस्ती इस हद तक बढ़ जाती है कि वो उसके आगे सजदा रेज़ होने और उस पर सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। वो फ़र्ते मुहब्बत में उस मक़ाम पर आ जाते हैं जहाँ उन्हें लगता है कि "हमारा जो कुछ है सब हमारे रूहानी पेशवा का है।" और होता यही है कि अवाम के पैसों से अवाम के लिए बनाई गई समाज की सारी जायदाद पेशवा और उनके ख़ानदान की मिल्कियत बन जाती है। इबादत गाहों से लेकर दूसरी तमाम जगहें अवाम इस्तेमाल तो कर सकती है मगर उस पर अपना हक़ नहीं जता सकती।
*हमीं से रंगे गुलिस्तां, हमीं से रंगे बहार/*
*हमीं को नज़्मे गुलिस्तां पे अख़्तियार नहीं//*
बहरहाल उधर एक ही ख़ानदान में यके बाद दीगरे वली अहद पैदा होते रहते हैं और इधर नस्ल दर नस्ल ग़ुलाम इब्ने ग़ुलाम का सिलसिला चलता रहता है। हाकिम ख़ानदान हुकूमत को अपना हक़ समझने लगता है और ग़ुलाम जनता ग़ुलामी में ही फ़ख़्र महसूस करने लगती है।
जब तक क़ौम में बेदारी की कमी और इल्म-ए-दीन से महरूमी बनी रहेगी तब तक इस्तेहसाल (शोषण) का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।
*ज़ालिमों की सरकशी हरगिज़ नहीं वज्हे मलाल/*
*अल्मिया ये है के मज़लूमों में बेदारी नहीं//*
- Safdar Shaamee
पैग़म्बर हो, इमाम हो, वली हो या आम मुस्लिम....दीन की ख़िदमत का फ़रीज़ा निभाने वाले हर शख़्स के लिए ज़रूरी है क़ुर्बानी। ये काम अल्लाह की रिज़ा और उसके बंदों की फ़लाहो बहबूद के लिए किया जाता है। अल्लाह की जानिब बुलाने वाले शख़्स को अपने किरदार और अपने रहन-सहन से दूसरों के लिए नज़ीर भी क़ायम करना होता है। अल्लाह के मुत्तक़ी बंदों के लिए दौलत और जायदाद कुछ हैसियत नहीं रखती। उनकी नज़र आख़िरत पर होती है और उनकी अमली ज़िंदगी क़ुरआन की इस आयत का मज़हर होती है *"और दुनिया की ज़िंदगी तो धोके के सामान के सिवा कुछ नहीं"* (आले इमरान 3:185) पैग़म्बर ए इस्लाम (स.अ.व स.) और मौला अली (क.) की ज़िंदगियां इसकी बेहतरीन मिसाल हैं। ये ऐसी हस्तियां हैं कि....
*उनकी निगाहे नाज़ में दुनिया की सल्तनत/*
*बोसीदा जूतियों से भी कमतर दिखाई दे//*
अल्लाह वालों का असल किरदार यही होता है। यही किरदार, हमेशा हमेशा के लिए तारीख़ में दर्ज किया जाता है। वर्ना अमीरी की शानो-शौकत आदमी की सांसें थमते ही उसके वारिस को मुंतक़िल हो जाती है और मरहूम को चंद दिनों की रुसूमात के बाद भुला दिया जाता है।
जब तक दीन और क़ौम की ख़िदमत में दौलत की चमक-दमक नहीं थी तब तक उस में इख़्लास था। उस दौर में क़ौम की रहबरी का बीड़ा उठाने का मतलब था अपने वक़्त और सरमाए की क़ुर्बानी। वक़्त के साथ मज़हब कमाई का ज़रिया बनता गया। इख़्लास घटने लगा। पैसा ताक़त ले कर आता है और ताक़त हुकूमत में बदलने लगती है। जैसे जैसे दुनियादारी के तक़ाज़े बढ़ने लगते हैं, अवाम में इल्म और इबादत से दूरी बढ़ने लगती है। ऐसे में इक ऐसे रूहानी पेशवा की ज़रूरत होती है जिसके इल्म पर भरोसा किया जा सके और उसके बताए रास्ते पर चल कर अपनी आख़िरत का सामान कर सकें। नतीजतन लोग दीनी मुआमलात में धर्मगुरु पर आँख बंद कर के भरोसा करने लगते हैं। लाइल्मी और निर्भरता धीरे धीरे महकूमियत में बदलने लगती है। महकूमियत की ग़ुलामाना सोच धर्मगुरु को इतना ताक़तवर बना देती है कि फिर वो हाकिम के लहजे में बात करने लगता है।
वक़्त के साथ ख़ुद साख़्ता हाकिम के ग़ुरूर का ग्राफ़ इस ऊँचाई तक चला जाता है जहाँ से उसे इंसान बहुत बौने दिखाई देने लगते हैं और बलंदी का एहसास उस में ख़ुदाई का एहसास पैदा कर देता है। दूसरी तरफ़ अवाम में शख़्सियत परस्ती इस हद तक बढ़ जाती है कि वो उसके आगे सजदा रेज़ होने और उस पर सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं। वो फ़र्ते मुहब्बत में उस मक़ाम पर आ जाते हैं जहाँ उन्हें लगता है कि "हमारा जो कुछ है सब हमारे रूहानी पेशवा का है।" और होता यही है कि अवाम के पैसों से अवाम के लिए बनाई गई समाज की सारी जायदाद पेशवा और उनके ख़ानदान की मिल्कियत बन जाती है। इबादत गाहों से लेकर दूसरी तमाम जगहें अवाम इस्तेमाल तो कर सकती है मगर उस पर अपना हक़ नहीं जता सकती।
*हमीं से रंगे गुलिस्तां, हमीं से रंगे बहार/*
*हमीं को नज़्मे गुलिस्तां पे अख़्तियार नहीं//*
बहरहाल उधर एक ही ख़ानदान में यके बाद दीगरे वली अहद पैदा होते रहते हैं और इधर नस्ल दर नस्ल ग़ुलाम इब्ने ग़ुलाम का सिलसिला चलता रहता है। हाकिम ख़ानदान हुकूमत को अपना हक़ समझने लगता है और ग़ुलाम जनता ग़ुलामी में ही फ़ख़्र महसूस करने लगती है।
जब तक क़ौम में बेदारी की कमी और इल्म-ए-दीन से महरूमी बनी रहेगी तब तक इस्तेहसाल (शोषण) का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा।
*ज़ालिमों की सरकशी हरगिज़ नहीं वज्हे मलाल/*
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- Safdar Shaamee
Re: Bohra whatsapp duniya
http://www.dawoodi-bohras.com/forum/download/file.php?mode=view&id=4207
When the speaker asks the Dai to recite the Qur'an, he sends his assistant instead and then after the Dai is given the award he doesn't even give a thanksgiving speech. This is what happens when you have illiterate people as leaders, be it religion or country (Fake degree wala Modi is a prime example)
When the speaker asks the Dai to recite the Qur'an, he sends his assistant instead and then after the Dai is given the award he doesn't even give a thanksgiving speech. This is what happens when you have illiterate people as leaders, be it religion or country (Fake degree wala Modi is a prime example)
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Re: Bohra whatsapp duniya
juzer esmail: Wah! Kya kehne hei
The rebellion of the oppressors is never a reason for regret
The wisdom is that there is no awakening among the oppressed
- Safdar Shaamee
The rebellion of the oppressors is never a reason for regret
The wisdom is that there is no awakening among the oppressed
- Safdar Shaamee
Re: Bohra whatsapp duniya
This translation is not correct. This is closer to the gist:
Atrocities by tyrants are never a reason for regret
Tragedy is that the oppressed are not awakened
Re: Bohra whatsapp duniya
Shukran Reporter Bhai: Thank you for the 'correct' translation. "There are more ways than one to skin a cat."
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Re: Bohra whatsapp duniya
The current practice of loudly shouting "Labbaik ya daiallah" during the Azan is a growing tradition among some followers. Previously, individuals would quietly recite this phrase, but now it is being vocalized loudly. There is a belief that during the time of the Prophet, people would respond with "Labbaik ya rasoolallah" when the messenger asked the people of the time. The question arises whether it is considered shirk to say "Labbaik ya dai" while listening to the Azan.
Re: Bohra whatsapp duniya
@Haider_Ali bhai, from my knowledge i can say during Azan no voice should be raised above the azan voice. During Azan everything stops, people stop talking, TV turn off, loudspeakers, music all OFF. Even some non-muslims i have seen stop talking during Azan as a sign of respect. Azan is an announcement and Baiyat to Allah SWT that the is no god but Allah SWT and Muhammad SAW is the messenger of Allah. Now to mention Labbaika ya Daiallah during Azan is an act of shirk where we are associating in Azan the Hierarchy that the is no God but Allah SWT, Muhammad SAW as his messenger and Ali AS as his Wali / Wasi. Dai wants to associate himself within the Azan. I remember SMB mentioned in one of his Waez to say these words when one hears an Azan call.
This is innovation, adding Laibaika ka Daiallah during Azan and compulsory 2 rakat namaz for Tullul-Umar of Dai where is it going to end. I remember 1 guy even mentioned that SMB was even greater then Imam Husain AS (Nauzobillah).
This is innovation, adding Laibaika ka Daiallah during Azan and compulsory 2 rakat namaz for Tullul-Umar of Dai where is it going to end. I remember 1 guy even mentioned that SMB was even greater then Imam Husain AS (Nauzobillah).
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Re: Bohra whatsapp duniya
I don't know what masjid you have gone to where you are asked to say labbaik ya daiallh. In all Dawoodi bohra masjids we are asked to say Subhanallah when hayya alas salaat and hayya alal falah is recited in azaan.
Even though Quran e majid is afzal and above all else in this world, but if you are reciting it and azan starts, you are supposed to halt during the azan, then resume when it ends.
Even though Quran e majid is afzal and above all else in this world, but if you are reciting it and azan starts, you are supposed to halt during the azan, then resume when it ends.
Re: Bohra whatsapp duniya
Yes Kaka Akela you are right one has to pause reciting Quran when there is a Azan call but i can vouch that i heard in one of SMB recording to yell out Labbaik Ya Daiallah when they hear the call of Azan. So in conclusion SMB did make small / big mistakes in his lifetime and misguided the community to glorify himself ! Right ?
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Re: Bohra whatsapp duniya
Even kuffar are mocking now because of stupid jamiya students who left their brain in gutter.
Kaha se kaha pohcha diya
Kaha se kaha pohcha diya
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Re: Bohra whatsapp duniya
Jamiya naa student ewa jhahil che ke. Koi kai kai de to gutter maa utri ne gutter nu Pani bhi pin jai.
Shame on parents who put their children to such a jamiya factory which makes their kids zombi.
Shame on parents who put their children to such a jamiya factory which makes their kids zombi.
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Re: Bohra whatsapp duniya
SHAMEFUL
Re: Bohra whatsapp duniya
Idol worship on full display:
http://www.dawoodi-bohras.com/forum/download/file.php?mode=view&id=4209
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Re: Bohra whatsapp duniya
This kind of frenzy is so bad not just for the community but also as an individual mental peace.
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Re: Bohra whatsapp duniya
The Arabic word "Maula" has various meanings, including friend, leader, king, and master. In the context of the Bohra community, "Maula" is used to refer to their leader, who is considered a spiritual guide and protector. However, Aalim & Mullah's have degraded the meaning as "Jaan ane Maal na maalik" (the owner of life and wealth). Only Allah is the true owner of our body, soul, and wealth, as He is the provider of sustenance to all of His creation.
Prophet Muhammad's SAW primary goal was to guide people towards Islam and the Sunnah, and that he did not seek to be praised or considered a partner to Allah. After 14 centuries, what we witness is a self-made man asking people to praise him and consider him the Messiah. I duly respect him as a Dai (guide) but if he wants us to do sujood for him than we should refrain.
Prophet Muhammad's SAW primary goal was to guide people towards Islam and the Sunnah, and that he did not seek to be praised or considered a partner to Allah. After 14 centuries, what we witness is a self-made man asking people to praise him and consider him the Messiah. I duly respect him as a Dai (guide) but if he wants us to do sujood for him than we should refrain.
Re: Bohra whatsapp duniya
The imbibers from Dahod were arrested and their properties were confiscated for consuming alcohol in Gujarat where it is banned by law.
At my University, while distributing the final exam paper, the invigilator surprised everyone when he said: "You may copy, but do not get caught!"
At my University, while distributing the final exam paper, the invigilator surprised everyone when he said: "You may copy, but do not get caught!"
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Re: Bohra whatsapp duniya
Check out the meaning of Maula in the last ayat of Surah Baqarah!Haider_Ali wrote: ↑Fri Jan 12, 2024 12:34 pm The Arabic word "Maula" has various meanings, including friend, leader, king, and master. In the context of the Bohra community, "Maula" is used to refer to their leader, who is considered a spiritual guide and protector. However, Aalim & Mullah's have degraded the meaning as "Jaan ane Maal na maalik" (the owner of life and wealth). Only Allah is the true owner of our body, soul, and wealth, as He is the provider of sustenance to all of His creation.
Prophet Muhammad's SAW primary goal was to guide people towards Islam and the Sunnah, and that he did not seek to be praised or considered a partner to Allah. After 14 centuries, what we witness is a self-made man asking people to praise him and consider him the Messiah. I duly respect him as a Dai (guide) but if he wants us to do sujood for him than we should refrain.
In my humble opinion only Allah is the Mufti, Mufassir and Mawla!
Re: Bohra whatsapp duniya
Ibrahim b.s. Ezzuddin.
The latest and by far the best product of Kothar's "MOJIZA FACTORY"
http://www.dawoodi-bohras.com/forum/download/file.php?mode=view&id=4210
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Re: Bohra whatsapp duniya
they will say allllll the bullllcrappppp but will never provide the name and address of the person with whom any such thing happened.
Re: Bohra whatsapp duniya
On the similar thread of messages we received information this bhai exist in Kuwait but don't know the details. Maybe some one from Kuwait can enlightened us.
Such Mojiza's were only done my Nabi SAW but Dai doing the same ?? Why such news comes out after such a long time that Dai has the power to perform such Majiz, make dead people alive ? And why does a jamea student remind a Dai that you perform such a miracle ? How does a baby remember such thing. Shouldn't the grandmother come upfront and narrate this miracle.
Very confusing......the current Dai should visit Palestine and save the children's.
Such Mojiza's were only done my Nabi SAW but Dai doing the same ?? Why such news comes out after such a long time that Dai has the power to perform such Majiz, make dead people alive ? And why does a jamea student remind a Dai that you perform such a miracle ? How does a baby remember such thing. Shouldn't the grandmother come upfront and narrate this miracle.
Very confusing......the current Dai should visit Palestine and save the children's.
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Re: Bohra whatsapp duniya
https://www.youtube.com/live/1kJfJigdaO ... b-10-4H74J
Agha khani dancing for Ram Mandir
What is wrong with these people?
Agha khani dancing for Ram Mandir
What is wrong with these people?
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Re: Bohra whatsapp duniya
https://www.youtube.com/watch?v=wC2-0NMZH8M
What is wrong with these people?
this is also coming up in Bohra world?
What is wrong with these people?
this is also coming up in Bohra world?
Re: Bohra whatsapp duniya
How come Syedna Muffazal Ali Qadr Saifuddin wasn't invited to Ayaodhya for Ram Mandir inauguration. SMS invited Modi on day of Ashura, aren't they friends on equal term ??
No Qasre Aali, Baite Zaini nor Qaid Joker or any of his brothers were present in Ram Mandir only some expendable fools on streets were made to dance.
No assistance to Palestine nor any help in home country Yemen and here we are celebrating Ram Mandir by so called Dai of Imam Husain AS prepare mumineen for Zawaal.
Moula Moula Muffadal Moula.... Jai shree Ram Jai Shree Ram
No Qasre Aali, Baite Zaini nor Qaid Joker or any of his brothers were present in Ram Mandir only some expendable fools on streets were made to dance.
No assistance to Palestine nor any help in home country Yemen and here we are celebrating Ram Mandir by so called Dai of Imam Husain AS prepare mumineen for Zawaal.
Moula Moula Muffadal Moula.... Jai shree Ram Jai Shree Ram
Last edited by allbird on Mon Jan 22, 2024 7:38 am, edited 1 time in total.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Modi invited many but then he called and said if you dont come its better because of religious limits. he actually cares more about his religion than Muffy morela