Bohra whatsapp duniya
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Re: Bohra whatsapp duniya
HAHAHAHHAHAHAHA now criminal minded people are DAI MAZOON AND MUKASIR
they should name Dawoodi bohra to Goondabohri jamaat now
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Re: Bohra whatsapp duniya
may Allah finish this drama soonjuzer esmail wrote: ↑Mon Jun 24, 2024 9:05 am Huzurala tus yehh aajna Mubarak din maa.
Mazoon na rutba ma Shz Qaidjohar bs Ezzuddin. ( Mumbai & London DON )
And
Mukasir na rutba ma Shz Malekul Ashtar bs Shujauddin ( America DON )
Ne Qaimm farmayu chee
PS - WW is coming soon so they might not have many years to fool people
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Re: Bohra whatsapp duniya
As expected all criminal politicians welcoming muffy to Pakistan
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Re: Bohra whatsapp duniya
Hi
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Re: Bohra whatsapp duniya
@real Bohras
why not posting videos now?
infact this is the time of the year when bohras will be most active on internet from masjid during waez, even I suggest to run Insta add to promote your website for 10 days and target bohras.
why not posting videos now?
infact this is the time of the year when bohras will be most active on internet from masjid during waez, even I suggest to run Insta add to promote your website for 10 days and target bohras.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Hathras Wale baba our humare baba ke bich ki samanata :
Hathras Wale baba ki personal army hai our humare Wale ki bhi
Hathras Wale baba ke sewadar video nahi nikalne dete hai our humare sewadar bhi
Hathras Wale baba apni Charan Raj se bhakto ki bimariya door karne ka dawa karte hai our humare sheefa Wale paani se
Hathras Wale baba ko unke bhakt parmatma mante our humare Wale khuda
Hathras Wale baba ki gadi ke pi6e unke bhakt bhagte hai our humare baba ki gadi ke pi6e bhi
Hathras Wale baba ke chamtkar ka koi saboot nahi hai our humare baba ke mozize ka bhi
Hathras Wale baba ki lifestyle Raja Maharajao jaisi hai our humare baba ki bhi!
Note: kisiko our koi samanata dikhe to isme add kar sakte hai
Baba ki line khuli rahegi!
Hathras Wale baba ki personal army hai our humare Wale ki bhi
Hathras Wale baba ke sewadar video nahi nikalne dete hai our humare sewadar bhi
Hathras Wale baba apni Charan Raj se bhakto ki bimariya door karne ka dawa karte hai our humare sheefa Wale paani se
Hathras Wale baba ko unke bhakt parmatma mante our humare Wale khuda
Hathras Wale baba ki gadi ke pi6e unke bhakt bhagte hai our humare baba ki gadi ke pi6e bhi
Hathras Wale baba ke chamtkar ka koi saboot nahi hai our humare baba ke mozize ka bhi
Hathras Wale baba ki lifestyle Raja Maharajao jaisi hai our humare baba ki bhi!
Note: kisiko our koi samanata dikhe to isme add kar sakte hai
Baba ki line khuli rahegi!
Re: Bohra whatsapp duniya
WTF..Aliasgar ko ek na ek din to jana hi tha..Malik e bister ne nokia muffu ke ladke ko di he matlab drama hoga malik e bister apna chula choka alag karlega..dawedar mazoon nahi mukasir banega jab joker out ho jayega...juzer esmail wrote: ↑Mon Jun 24, 2024 9:05 am Huzurala tus yehh aajna Mubarak din maa.
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Re: Bohra whatsapp duniya
*आँधियों से लड़ रहा है आज भी तेरा चराग़*
बदक़िस्मती से दीगर मज़ाहिब की तरह इस्लाम के पैरोकारों के अक़ायद भी साल के कुछ मख़सूस दिन और त्यौहारों में सिमट कर रह गए हैं। इन त्यौहारों को अक़ीदत के साथ मनाना ही इस्लाम को मुकम्मल तौर पर मानने का हक़ अदा करना समझ लिया गया है।
यही वजह है कि इस्लाम की अज़ीम तरीन शख़्सियतें भी याद किए जाने के लिए कैलेंडर की एक ख़ास तारीख़ तक महदूद हो कर रह गई हैं। उस तारीख़ से पहले और उस तारीख़ के बाद वो शख़्सियत महज़ एक क़बिले एहतराम नाम होती है। न उसका ज़िक्र, न उसकी याद, न उस पर अमल की कोशिश। मुसलमानों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उसकी कोई जगह नहीं होती। वो ही कारोबार की मसरूफ़ियतें, वो ही नफ़े-नुक़सान का हिसाब, वो ही झूठ-सच, वो ही बातिल परस्ती की ताईद, वो ही मस्लेहत के नाम पर सब को राज़ी करने की कोशिशें और वो ही समाज के दबाव में ग़लत अक़ीदों के साथ समझौता।
अल्लाह के ख़ास बंदों से सिर्फ़ अक़ीदत रखना ही उनके पैरोकार होना समझा जाता है। यही दीन से ग़फ़लत की बुनियादी वजह है। इस्लाम की वो हस्तियां जो एहले ईमान के लिए वास्तविक नमूने और आदर्श हैं, महज़ एहतराम के माॅडल बन कर रह गए हैं। यक़ीनन त्यौहार की शक्ल में ये मख़सूस अय्याम अक़ीदतमंदों और चाहने वालों के लिए अपनी महबूब शख़्सियतों के एहतराम के इज़हार का मौक़ा भी है और उनके बेनज़ीर किरदार पर फ़ख़्र करने का ज़रिया भी। मगर उनके किरदार को अपने किरदार में उतारने की न कोशिश होती है न इरादा।
दरअसल किसी भी मसलक का कोई भी आलिम कभी इस बात की तरफ़ तवज्जो नहीं दिलाता कि ये हस्तियां गुज़रे ज़माने की कहानियों के महज़ किरदार नहीं है बल्कि हमारे लिए ज़िंदा नमूने हैं। इनकी पाक ज़िंदगियां सुन कर और पढ़ कर हमारे किरदार, हमारे आमाल, हमारी तबीयत और हमारी सोच में इंक़लाब आना ही चाहिए। यही असल ख़िराजे अक़ीदत है। दीन के इजारादार इन की सादगी, तक़वा, इबादतें, क़ुर्बानियां, शुजाअत और अख़्लाक़ पर लच्छेदार तक़रीरें तो करते हैं मगर ख़ुद की ज़िंदगी उनकी ज़िंदगी से ठीक उलट होती है। उनके किरदार का परतव इनकी तर्ज़े ज़िंदगी पर कहीं नज़र नहीं आता। सय्यदुल मुरसलीन मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) और मौला अली (अ) से अक़ीदत और मुहब्बत का मुआमला भी यही है कि वो हमारे इज़हार में तो है, किरदार में नहीं।
चौदह सदियों से मुहर्रम भी आते और जाते हैं मगर हुसैनियत का जज़्बा कहीं पैदा होता नज़र नहीं आता। हालाँकि यज़ीद हर दौर में पैदा होते हैं और होते रहेंगे। दरअसल हुकूमत की तमन्ना ही यज़ीदियत के पनपने की ज़मीन तैयार करती है। हुकूमत पसंद इंसान हर वो हर्बा अपनाने पर आमादा रहता है जिस से वो इक़्तेदार में बना रहे। लेकिन अगर हुकूमत की हवस के निशाने पर इस्लाम का वजूद हो और उम्मत ख़ामोश तमाशाई बनी रहे तो मुहर्रम महज़ एक त्यौहार से ज़्यादा कुछ नहीं। हुसैनियत का दम भरने वाले आज मुनाफ़िक़त को मसलेहत का नाम दे कर अपनी ख़ुशहाल ज़िंदगी को महफ़ूज़ रखने में कामयाबी समझते हैं। अल्मिया ये है कि हुसैन (अ) के चाहने वाले करोड़ों हैं मगर हुसैनियत का फ़ुक़दान है और यज़ीद का मानने वाला कोई नहीं मगर यज़ीदियत पनप रही है। ऐसे मुख़ालिफ़ माहौल में हुसैनियत के जज़्बे की और ज़्यादा ज़रूरत है।
*फिर असरे नौ के शिम्र हैं ख़ंजर लिए हुवे//*
दरअसल हम ने कर्बला को सुना है, समझा नहीं है। हुसैन इब्ने अली का सब्र...इसतक़्लाल..अज़्म..शुजाअतऔर शहादत..जैसी तमामतर ख़ूबियों का सरचश्मा अल्लाह पर "तवक्कल" है। नवास ए रसूल (स) ने कर्बला में अपने अमल से ये साबित किया कि अल्लाह पर तवक्कल बंदे को किस मैयार तक ले जा सकता है। कर्बला हमें तौहीद का पैग़ाम भी देती है। हज़रते हुसैन (अ) के बैअत से इंकार और शहादत का वाहिद मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रिज़ा हासिल करना था। इमाम ने कर्बला से उम्मत को ये पैग़ाम भी दिया कि हालात कितने भी मुश्किल हों, नमाज़ नहीं छूटनी चाहिए। और हुसैन (अ) ने जिन हालात में नमाज़ अदा की है उस का तसव्वुर भी आम इंसान के लिए मुमकिन नहीं। शहादत से ठीक पहले इमाम आली मक़ाम का तारीख़ी सजदा इबादत की मेराज भी है और ईमान की मेराज भी।
बहरहाल इस अशरए मुहर्रम में अगर अज़ादारी से मुहब्बत का इज़हार हो तो इरादों से अमल का अज़्म भी, ताकि हम जैसे ग़ुलामाने हुसैन भी कम अज़ कम इतनी जुरअत तो पैदा कर सकें कि ग़लत को ग़लत और सच को सच कहने में ज़बान लड़खड़ाए नहीं।
*ऐ ज़िंदगी जलाल ए शहे मश्रक़ैन दे//*
*इस ताज़ा कर्बला को भी अज़्मे हुसैन दे//*
सफ़दर शामी
बदक़िस्मती से दीगर मज़ाहिब की तरह इस्लाम के पैरोकारों के अक़ायद भी साल के कुछ मख़सूस दिन और त्यौहारों में सिमट कर रह गए हैं। इन त्यौहारों को अक़ीदत के साथ मनाना ही इस्लाम को मुकम्मल तौर पर मानने का हक़ अदा करना समझ लिया गया है।
यही वजह है कि इस्लाम की अज़ीम तरीन शख़्सियतें भी याद किए जाने के लिए कैलेंडर की एक ख़ास तारीख़ तक महदूद हो कर रह गई हैं। उस तारीख़ से पहले और उस तारीख़ के बाद वो शख़्सियत महज़ एक क़बिले एहतराम नाम होती है। न उसका ज़िक्र, न उसकी याद, न उस पर अमल की कोशिश। मुसलमानों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उसकी कोई जगह नहीं होती। वो ही कारोबार की मसरूफ़ियतें, वो ही नफ़े-नुक़सान का हिसाब, वो ही झूठ-सच, वो ही बातिल परस्ती की ताईद, वो ही मस्लेहत के नाम पर सब को राज़ी करने की कोशिशें और वो ही समाज के दबाव में ग़लत अक़ीदों के साथ समझौता।
अल्लाह के ख़ास बंदों से सिर्फ़ अक़ीदत रखना ही उनके पैरोकार होना समझा जाता है। यही दीन से ग़फ़लत की बुनियादी वजह है। इस्लाम की वो हस्तियां जो एहले ईमान के लिए वास्तविक नमूने और आदर्श हैं, महज़ एहतराम के माॅडल बन कर रह गए हैं। यक़ीनन त्यौहार की शक्ल में ये मख़सूस अय्याम अक़ीदतमंदों और चाहने वालों के लिए अपनी महबूब शख़्सियतों के एहतराम के इज़हार का मौक़ा भी है और उनके बेनज़ीर किरदार पर फ़ख़्र करने का ज़रिया भी। मगर उनके किरदार को अपने किरदार में उतारने की न कोशिश होती है न इरादा।
दरअसल किसी भी मसलक का कोई भी आलिम कभी इस बात की तरफ़ तवज्जो नहीं दिलाता कि ये हस्तियां गुज़रे ज़माने की कहानियों के महज़ किरदार नहीं है बल्कि हमारे लिए ज़िंदा नमूने हैं। इनकी पाक ज़िंदगियां सुन कर और पढ़ कर हमारे किरदार, हमारे आमाल, हमारी तबीयत और हमारी सोच में इंक़लाब आना ही चाहिए। यही असल ख़िराजे अक़ीदत है। दीन के इजारादार इन की सादगी, तक़वा, इबादतें, क़ुर्बानियां, शुजाअत और अख़्लाक़ पर लच्छेदार तक़रीरें तो करते हैं मगर ख़ुद की ज़िंदगी उनकी ज़िंदगी से ठीक उलट होती है। उनके किरदार का परतव इनकी तर्ज़े ज़िंदगी पर कहीं नज़र नहीं आता। सय्यदुल मुरसलीन मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) और मौला अली (अ) से अक़ीदत और मुहब्बत का मुआमला भी यही है कि वो हमारे इज़हार में तो है, किरदार में नहीं।
चौदह सदियों से मुहर्रम भी आते और जाते हैं मगर हुसैनियत का जज़्बा कहीं पैदा होता नज़र नहीं आता। हालाँकि यज़ीद हर दौर में पैदा होते हैं और होते रहेंगे। दरअसल हुकूमत की तमन्ना ही यज़ीदियत के पनपने की ज़मीन तैयार करती है। हुकूमत पसंद इंसान हर वो हर्बा अपनाने पर आमादा रहता है जिस से वो इक़्तेदार में बना रहे। लेकिन अगर हुकूमत की हवस के निशाने पर इस्लाम का वजूद हो और उम्मत ख़ामोश तमाशाई बनी रहे तो मुहर्रम महज़ एक त्यौहार से ज़्यादा कुछ नहीं। हुसैनियत का दम भरने वाले आज मुनाफ़िक़त को मसलेहत का नाम दे कर अपनी ख़ुशहाल ज़िंदगी को महफ़ूज़ रखने में कामयाबी समझते हैं। अल्मिया ये है कि हुसैन (अ) के चाहने वाले करोड़ों हैं मगर हुसैनियत का फ़ुक़दान है और यज़ीद का मानने वाला कोई नहीं मगर यज़ीदियत पनप रही है। ऐसे मुख़ालिफ़ माहौल में हुसैनियत के जज़्बे की और ज़्यादा ज़रूरत है।
*फिर असरे नौ के शिम्र हैं ख़ंजर लिए हुवे//*
दरअसल हम ने कर्बला को सुना है, समझा नहीं है। हुसैन इब्ने अली का सब्र...इसतक़्लाल..अज़्म..शुजाअतऔर शहादत..जैसी तमामतर ख़ूबियों का सरचश्मा अल्लाह पर "तवक्कल" है। नवास ए रसूल (स) ने कर्बला में अपने अमल से ये साबित किया कि अल्लाह पर तवक्कल बंदे को किस मैयार तक ले जा सकता है। कर्बला हमें तौहीद का पैग़ाम भी देती है। हज़रते हुसैन (अ) के बैअत से इंकार और शहादत का वाहिद मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह की रिज़ा हासिल करना था। इमाम ने कर्बला से उम्मत को ये पैग़ाम भी दिया कि हालात कितने भी मुश्किल हों, नमाज़ नहीं छूटनी चाहिए। और हुसैन (अ) ने जिन हालात में नमाज़ अदा की है उस का तसव्वुर भी आम इंसान के लिए मुमकिन नहीं। शहादत से ठीक पहले इमाम आली मक़ाम का तारीख़ी सजदा इबादत की मेराज भी है और ईमान की मेराज भी।
बहरहाल इस अशरए मुहर्रम में अगर अज़ादारी से मुहब्बत का इज़हार हो तो इरादों से अमल का अज़्म भी, ताकि हम जैसे ग़ुलामाने हुसैन भी कम अज़ कम इतनी जुरअत तो पैदा कर सकें कि ग़लत को ग़लत और सच को सच कहने में ज़बान लड़खड़ाए नहीं।
*ऐ ज़िंदगी जलाल ए शहे मश्रक़ैन दे//*
*इस ताज़ा कर्बला को भी अज़्मे हुसैन दे//*
सफ़दर शामी
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Re: Bohra whatsapp duniya
Not sure how many here follows Indian politics but the recent statement by sankracharya against modi and in support of rahul clearly shows kafir sankracharya has more guts than bohra leader who calls him self all powerful.
sankracharya isnt afraid of modi and his gov unlike muffy, sankracharya does not feel the need to kneel down to modi or any gov.
Question: If Imam comes today how will he react to sankracharya and Muffy?
sankracharya isnt afraid of modi and his gov unlike muffy, sankracharya does not feel the need to kneel down to modi or any gov.
Question: If Imam comes today how will he react to sankracharya and Muffy?
Re: Bohra whatsapp duniya
Looks like you're from India. Was it necessary to use the word Kafir for the Shankaracharya? It is because of bigot Muslims like you and words like these that Muslims face constant hatred in India. Accept and respect all religions and their systems. If you're true to your Islam then it should give you spiritual stability and satisfaction. If not, then your belief is deficient. And remember, the Quran says "to you your faith, to me mine."Sheikh Ali sadiq wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:15 am Not sure how many here follows Indian politics but the recent statement by sankracharya against modi and in support of rahul clearly shows kafir sankracharya has more guts than bohra leader who calls him self all powerful.
sankracharya isnt afraid of modi and his gov unlike muffy, sankracharya does not feel the need to kneel down to modi or any gov.
Question: If Imam comes today how will he react to sankracharya and Muffy?
Stop being a stupid Muslim. You are no better than the Bohra abdes you criticize.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Completely agree with Brother Humsafar.
It is just plain wrong to use such words. Leave it to the higher power (we say Allah, other use words such as parmatma, Ishwar, God, ...) to decide on such weighty matters. To use a corporate world terminology, "Such matters are way way way above our pay grade (or understanding)"
It is just plain wrong to use such words. Leave it to the higher power (we say Allah, other use words such as parmatma, Ishwar, God, ...) to decide on such weighty matters. To use a corporate world terminology, "Such matters are way way way above our pay grade (or understanding)"
Re: Bohra whatsapp duniya
Completely agree with @humsafar. it is dolts like @Sheikh Ali sadiq who give Islam and Dawoodi Bohra's a bad nameHumsafar wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:28 amLooks like you're from India. Was it necessary to use the word Kafir for the Shankaracharya? It is because of bigot Muslims like you and words like these that Muslims face constant hatred in India. Accept and respect all religions and their systems. If you're true to your Islam then it should give you spiritual stability and satisfaction. If not, then your belief is deficient. And remember, the Quran says "to you your faith, to me mine."Sheikh Ali sadiq wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:15 am Not sure how many here follows Indian politics but the recent statement by sankracharya against modi and in support of rahul clearly shows kafir sankracharya has more guts than bohra leader who calls him self all powerful.
sankracharya isnt afraid of modi and his gov unlike muffy, sankracharya does not feel the need to kneel down to modi or any gov.
Question: If Imam comes today how will he react to sankracharya and Muffy?
Stop being a stupid Muslim. You are no better than the Bohra abdes you criticize.
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Re: Bohra whatsapp duniya
you are just uneducated doesnt mean I have to use other word, go and search the meaning of KAFIR it means nothing but a disbeliever in Allah.Humsafar wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:28 amLooks like you're from India. Was it necessary to use the word Kafir for the Shankaracharya? It is because of bigot Muslims like you and words like these that Muslims face constant hatred in India. Accept and respect all religions and their systems. If you're true to your Islam then it should give you spiritual stability and satisfaction. If not, then your belief is deficient. And remember, the Quran says "to you your faith, to me mine."Sheikh Ali sadiq wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:15 am Not sure how many here follows Indian politics but the recent statement by sankracharya against modi and in support of rahul clearly shows kafir sankracharya has more guts than bohra leader who calls him self all powerful.
sankracharya isnt afraid of modi and his gov unlike muffy, sankracharya does not feel the need to kneel down to modi or any gov.
Question: If Imam comes today how will he react to sankracharya and Muffy?
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Re: Bohra whatsapp duniya
Hamsafar clever tried to debate on word kafir which is perfectly Quranic to just dismiss the whole post, and other two idiots join his arguement.
this is perfect example how Muffy and his team confuse people {idiots}.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Don't expect much from munafiqs they are unaware of Quran and it's terminology. They just know how to sing ghanu jiwo. They all will end up in bad state here and hereafter. They just don't know it yet.
Quran is not part of their daily life.
Quran is not part of their daily life.
Re: Bohra whatsapp duniya
Sheikh saheb,
I know the meaning of the word Kafir and I'm not trying to debate it. The meaning here is not important. It is the perception of the word that is at issue here. Non-Muslims do not understand the meaning of Kafir, all they know is that it is a word of abuse. And let's be honest here, Muslims use it as such. Muslims say Kafir not to describe a person's "disbelief in Allah" but to condemn and demean that person. You used it as a term of abuse. There is a time and place to use kafir and there's a time and place not to use it. Try to understand the difference.
I know the meaning of the word Kafir and I'm not trying to debate it. The meaning here is not important. It is the perception of the word that is at issue here. Non-Muslims do not understand the meaning of Kafir, all they know is that it is a word of abuse. And let's be honest here, Muslims use it as such. Muslims say Kafir not to describe a person's "disbelief in Allah" but to condemn and demean that person. You used it as a term of abuse. There is a time and place to use kafir and there's a time and place not to use it. Try to understand the difference.
Re: Bohra whatsapp duniya
to illustrate what Humsafar is saying to the 2 resident viruses Ali Sadiq and Yamani, let me paint you another analogy.
the Mahrashtrian word "Ghaati".
It actually refers to people of Maharashtra who live alongside the stretch of the Western Ghats.
But in Mumbai, it is used as a derogation, an abuse, for someone who is uncouth and uncultured.
i hope you can understand the point Humsafar is making. Happy to sit you down and explain it futher, but after Ashura
the Mahrashtrian word "Ghaati".
It actually refers to people of Maharashtra who live alongside the stretch of the Western Ghats.
But in Mumbai, it is used as a derogation, an abuse, for someone who is uncouth and uncultured.
i hope you can understand the point Humsafar is making. Happy to sit you down and explain it futher, but after Ashura
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Re: Bohra whatsapp duniya
For once in a life go and read Quran and see how many times word kafir is used and it is not a word to insult some one. Media has made this word as an insult and idiot like you have fall for it.Humsafar wrote: ↑Thu Jul 11, 2024 10:33 am Sheikh saheb,
I know the meaning of the word Kafir and I'm not trying to debate it. The meaning here is not important. It is the perception of the word that is at issue here. Non-Muslims do not understand the meaning of Kafir, all they know is that it is a word of abuse. And let's be honest here, Muslims use it as such. Muslims say Kafir not to describe a person's "disbelief in Allah" but to condemn and demean that person. You used it as a term of abuse. There is a time and place to use kafir and there's a time and place not to use it. Try to understand the difference.
fact ; Quran uses 482 times word kafir in Quran.
@Hamsafar . People like you won't read Quran ever.
Re: Bohra whatsapp duniya
Excellent analogy, Zinger!
Fatema Behn, please try to understand that for the non-Muslim it doesn't matter how many times the word Kafir is in the Quran. It is a word of abuse and insult for them, whether created by the media or whoever is also beside the point. One should NOT go around calling people Kafir in any case, and especially in a secular society like India. If you cannot understand this then all your reading of the Quran is wasted on you. It's Muslims bigots like you who invite the hatred and atrocity by Hindu fanatics and the whole Muslim community suffers because of a few bigots like you.
Fatema Behn, please try to understand that for the non-Muslim it doesn't matter how many times the word Kafir is in the Quran. It is a word of abuse and insult for them, whether created by the media or whoever is also beside the point. One should NOT go around calling people Kafir in any case, and especially in a secular society like India. If you cannot understand this then all your reading of the Quran is wasted on you. It's Muslims bigots like you who invite the hatred and atrocity by Hindu fanatics and the whole Muslim community suffers because of a few bigots like you.
Re: Bohra whatsapp duniya
A disbeliever in Allah doesn't mean kaafir. kaafir is a much worse connotation and should not be used lightly. One who disbelieves in Allah is simply that, a disbeliever. A kaafir is one who hides the truth despite knowing it. A kaafir is one who actively works against Islam and Muslims. Allah refers to Shaitaan as a kaafir in the Quran. Shaitaan is not a disbeliever in Allah.Sheikh Ali sadiq wrote: ↑Thu Jul 11, 2024 5:41 amyou are just uneducated doesnt mean I have to use other word, go and search the meaning of KAFIR it means nothing but a disbeliever in Allah.Humsafar wrote: ↑Wed Jul 10, 2024 9:28 am
Looks like you're from India. Was it necessary to use the word Kafir for the Shankaracharya? It is because of bigot Muslims like you and words like these that Muslims face constant hatred in India. Accept and respect all religions and their systems. If you're true to your Islam then it should give you spiritual stability and satisfaction. If not, then your belief is deficient. And remember, the Quran says "to you your faith, to me mine."
Stop being a stupid Muslim. You are no better than the Bohra abdes you criticize.
The word Kaafir comes from Kufr. Kufr refers to the burying of the seed in the ground, akin to burying the truth.
Last edited by anajmi on Fri Jul 12, 2024 12:27 pm, edited 1 time in total.
Re: Bohra whatsapp duniya
The ayah you refer to is from Surah Qafiroon - Lakum Deeno Kum Waliya Deen
That is also not an accurate translation. Deen doesn't just mean faith. It means judgment. In Surah Fateha Allah refers to himself as "Maaliki Yaum-ud-deen" commonly translated as King/Owner of the day of judgment.
So the ayah you quote, an accurate translation for that would be - to you will be your judgment and to me my judgment.
Re: Bohra whatsapp duniya
Thank you anajmi for the correct translation
I hope the Sheikh saheb and Fatema Behn would pay heed.
I hope the Sheikh saheb and Fatema Behn would pay heed.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Lol, he's saying that is NOT the meaning! In any case, the point of my post was not about meaning. I'm just trying to say don't use it for non-Muslims, especially in a secular society. But it seems you're not getting the point. Peace.Fatema Yamani wrote: ↑Fri Jul 12, 2024 2:17 pm
Actually he is teaching you proper meaning of Kafir.
Basic meaning of Kafir is one who does not believe in Allah.
Re: Bohra whatsapp duniya
Everyone believes in something. If you do not believe in Allah, you believe in the self, the nature, the brahma, the christ etc etc. The best description of one who is a disbeliever in Allah would be a mushrik. One who has associated a partner with Allah. That partner could be yourself (atheist) or some other God. bohras, brahmacharya, shankaracharya, anyothercharya are mushriks. Bohras are mushriks because they believe you need the Dais permission to get to Jannah. Just Allah is not sufficient. Hence they have associated a partner with Allah.
Re: Bohra whatsapp duniya
true..like from ghati analogy some mumbaikar bhori gave, ghatis in entire maharashtra feels derogatory likewise kafirsHumsafar wrote: ↑Fri Jul 12, 2024 5:52 pmLol, he's saying that is NOT the meaning! In any case, the point of my post was not about meaning. I'm just trying to say don't use it for non-Muslims, especially in a secular society. But it seems you're not getting the point. Peace.Fatema Yamani wrote: ↑Fri Jul 12, 2024 2:17 pm
Actually he is teaching you proper meaning of Kafir.
Basic meaning of Kafir is one who does not believe in Allah.
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Re: Bohra whatsapp duniya
Yazeed k 2 plan aur Imam Hussain a.s ka karbala aane ka asal maqsad| Maulana Syed Arif Hussain Kazmi
Interesting point of view
https://youtu.be/FYooORDD8n4?si=lWcNBGPmjOHV-4OP
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Re: Bohra whatsapp duniya
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Re: Bohra whatsapp duniya
Ghani Jagah Par Agar Kuva Na Pani Ma Kharas Aavi Gai Hoi Che To Bawasab Maula Ehema Shifa Nu Pani Nakhi Ne Kuva Ne 3 Din Ban Rakhvanu Farmave Che, Jesi Ye Kuva Ni Kharas Chali Jai Ane Fari Si Ehema Mithu Pani Aava Lage,
Yej Misal Ashra Mubarka Ma Maula T.U.S. 9 Din Karobar Ban Rakhvanu Farmave Che Jesi Apna Vepar Ma Apna Gunaho Na Sabab Je Kharas Aavi Gai Hoi Ye Imam Husain Na Vasila Si Dur Thai Jai Ane Barakat Vanti Gunagun Rozi Mile.
Khuda Taala Imam Husain Ane Imam Husain Na Dai Na Wasila Si Je Mumieenin Ye 9 Din Karobar Ban Rakho To Ye Sagla Ne Ghani Ghani Barakat Aape, Khuda Taala Imam Husain Ni Zikar Taraf Apne Bulavnar Aqa Mufaddal Saifuddin Ni Umar Sharif Ne Ta Qayamat Daraz Karjo
Aameen
Yej Misal Ashra Mubarka Ma Maula T.U.S. 9 Din Karobar Ban Rakhvanu Farmave Che Jesi Apna Vepar Ma Apna Gunaho Na Sabab Je Kharas Aavi Gai Hoi Ye Imam Husain Na Vasila Si Dur Thai Jai Ane Barakat Vanti Gunagun Rozi Mile.
Khuda Taala Imam Husain Ane Imam Husain Na Dai Na Wasila Si Je Mumieenin Ye 9 Din Karobar Ban Rakho To Ye Sagla Ne Ghani Ghani Barakat Aape, Khuda Taala Imam Husain Ni Zikar Taraf Apne Bulavnar Aqa Mufaddal Saifuddin Ni Umar Sharif Ne Ta Qayamat Daraz Karjo
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